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श्री गीगाई माता इंदौखा

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                   श्री गीगाई माता इंदौखा  श्री गणेशाय नमः  श्री गीगाई करणी इन्द्र मां कृपा (1) करणी थला कहां स्थित हैं? (2) करनीथला की जमीन पर पुराने जमाने में किसका आधिपत्य था ? (3) यह परिक्रमा जो ओरण के चारों ओर कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही क्यों लगाई जाती हैं? > उपरुक्त ये सारे प्रश्न मेरे जेहन में बार बार आते रहते हैं। ऐसे में हमारे पूर्वजों द्वारा बताई गई वो कहानी जो उन्होंने अपने से पहले पूर्वजों से सुनी थी ,याद आती है, तब कुछ प्रश्नों के उत्तर तो उस कहानी के जरिए  सही सटीक मिल रहे है । उक्त कहानी को लिखने या समझने से पहले मुझे थोड़ा सा अतीत के झरोखे से झाकना पड़ रहा है। > श्री करणी चरित्र पुस्तक के रचियता ठाकुर किशोर सिंह वारस्पत्य्य जो तात्कालीन पटियाला रियासत के हिस्टोरियन थे, जिन्होंने अंग्रेजो के द्वारा मेडल भी प्राप्त था। उन्होंने इस पुस्तक में लिखा था कि बिठू की जागीर में बारह गांव थे । इन बाहर गांवों के नाम इस प्रकार है _ (1) बिठनोक   (2) देवायतरो   (3) ...

Charan Shakti

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Charan Charitra  चारण चरित्र  हम कौन हैं ?  क्या है ? और क्या थे ? और उस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हमारी आने वाली पीढ़ी क्या होगी ?                           माफ़ी चाहता हूँ कि BLOG खुलते ही  मेंने आप पर प्रश्नों की बौछार शुरु कर दी । लेकिन यह कटु सत्य है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को भी हम यह सब दे पाएंगे ? जो कुछ हमारे पास है और जो हमारे पुरखों ने हमें दीया है ।  क्या हम अपना अस्तित्व खो देंगे ? जी हां हम अपनी संस्कृति , पहचान , जाती , गोत्र , पुर्व में मिला हमारे पूर्वजों को सम्मान , हम सब खो देंगे । आज यह सब होता साफ़ साफ़ नजर आ रहा है । आज हम इस आधुनिकता के पीछे अपना अस्तित्व खो रहें हैं । दुसरी जातियों में अपना सम्मान निरन्तर खो रहें हैं । एक समय वह था जब यही जातियां हमें सम्मान व इज्जत देती थी , हमारे पूर्वजों को आदर व सम्मान की नजरों से देखा जाता था ।    जब किसी के साथ अन्याय होता या किसी को न्याय नहीं मिलता था तो वे हमारे पूर्वजों के पास आते थे यह उम्मीद ...

CharnaChar || चारण समाज || The Great Charans ||देवी पुत्र चारण

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                                                                                  चारण कुल     चारण कुल पौराणिक,  ऐतिहासिक  एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत मूल्यवान रहा है । वेदकाल में चारण शास्त्रों के रचयिता  थे । तो राजपूत युग में अत्यंत निडर , सत्यवकता , कवि एवं योद्धा थे। प्राणों को न्योछावर करने की निति , धर्म , संस्कार एवं संस्कृति के रक्षक तथा जागरूक प्रहरी थे । अनेक विषयों मे प्रजा के अभ्यास एवं संस्कार के मार्गदर्शक थे । परन्तु आज के समय में चारण समाज निर्देशिका भिन्नता के प्रश्न को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने लग गया है जो उचित नहीं है सारे समाज को कुरूढियौं से तिलांजली देने वाले चारण समाज ने आपसी भेदभाव की संकीर्णता का रूप धारण कर लिया है जो चारण समाज की उन्नति के मार्ग में बाधक है । आज जब विश्व बंधुतव की भावना चारो ओर प्रज्ज्वलित हो रही है  तो...