श्री गीगाई माता इंदौखा
श्री गीगाई माता इंदौखा
श्री गणेशाय नमः
श्री गीगाई करणी इन्द्र मां कृपा
(1) करणी थला कहां स्थित हैं?
(2) करनीथला की जमीन पर पुराने जमाने में किसका आधिपत्य था ?
(3) यह परिक्रमा जो ओरण के चारों ओर कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही क्यों लगाई जाती हैं?
> उपरुक्त ये सारे प्रश्न मेरे जेहन में बार बार आते रहते हैं। ऐसे में हमारे पूर्वजों द्वारा बताई गई वो कहानी जो उन्होंने अपने से पहले पूर्वजों से सुनी थी ,याद आती है, तब कुछ प्रश्नों के उत्तर तो उस कहानी के जरिए सही सटीक मिल रहे है । उक्त कहानी को लिखने या समझने से पहले मुझे थोड़ा सा अतीत के झरोखे से झाकना पड़ रहा है।
> श्री करणी चरित्र पुस्तक के रचियता ठाकुर किशोर सिंह वारस्पत्य्य जो तात्कालीन पटियाला रियासत के हिस्टोरियन थे, जिन्होंने अंग्रेजो के द्वारा मेडल भी प्राप्त था। उन्होंने इस पुस्तक में लिखा था कि बिठू की जागीर में बारह गांव थे । इन बाहर गांवों के नाम इस प्रकार है _
(1) बिठनोक (2) देवायतरो (3) रावनियारी। (4) कीनिया री बस्ती (5) साठिको (6) मूंजासर (7) मेघासर। (8) मोखा। (9) मोरखी (10) मानकसर। (11) झिनकली । व (12) इंदोको।
इन में से किसके दायभाग में कोनसा गांव आया इससे हमारे इस चरित्र का कोई सम्बन्ध नहीं है
इंदोकों को छोड़कर शेष गांव की कथा को छोड़कर मै पाठकों को इंदोका की कहानी की ओर ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश करता हूं । इंदोका जो कालान्तर में अपभ्रश होकर वर्तमान में राजस्व अनुसार इंदोखा हो गया है। कालान्तर में इस गांव की जागीर में भी परिवर्तन हो गया , जिस गाव की सारी जागीर पर बीठू चारनों का अधिकार था , उनके स्थान पर शेष 6000 बीघा जमीन ही बिठू चारनो के हिस्से में रही । ऐसा वर्णन हमारे बही भाट ने अपनी बही में लिखा है कि गोविंद दास जी बिठू जिन्होंने 6000 बीघा जमीन कचरा चौहान से प्राप्त की।
उन्होंने अपनी बही में लिखा है कि उन्ही बिठू चारणों
का वंशज गोविन्द दास जी जिन्होंने विक्रम संवत् 1665 में 6000 बीघा जमीन का रकबा पुनः प्राप्त किया।
गोविंद दास जी के दो पुत्र रत्न पैदा हुए , जिनके नाम क्रमशः जोगीदास जी व पीर दास जी थे । बड़े पुत्र जोगिदास जी के घर जोगमाया श्री गीगाई जी महाराज ने विक्रम संवत् 1730 में अवतार लेकर मुगल बादशाह से गाय्यो की गिनती छुड़ाने का ऐतिहासिक कार्य किया ।
जिसका वर्णन इस दोहे से मिल रहा है _
सैप्रत बरसा सात , परवाडो कीधो प्रथम ।
हथ सिर देता हाथ , बाघ थेया जद बाछड़ा ।।
अर्थात सात बरस की अवस्था में बछड़ों के पीठ पर अपने हाथ से थाप लगाकर बाघ बना दिया था और नावद गांव से मुगलों कि सेना को भागने के लिए मजबुर कर दिया था।
श्री गीगाई जी ने अपने जीवन काल में अनेक परचे परवाडे दिए , लेकिन उन शेष चमत्कारों को छोड़ते हुए , ये पंचम की ओरण वाली परिक्रमा वाला पर्सन मेरे जेहन में बार बार उत्पन हो रहा है , जिसका उतर हमारे पूर्वजों द्वारा बताई हुई निम्न लिखित कहानी में ढूंढने का प्रयास करते हैं , वे बताते है कि " एक शाम को कुछ कन्याए व दो छोटे _छोटे बालक इंदोखा में ठाकुर साहब के घर आए जो श्री गीगाई जी को पहचान रहे थे । ठाकुर साहब ने श्री गीगाई जी को को सम्बोधित करते हुए पूछा " अंदाता ये बालक कोन है? कहां के है? यहां केसे? " उन बालको में से एक बच्ची बोली हम तो आपके इस बच्ची के पास रमने के लिए अक्सर आया करते है आज कुछ देरी हो गई । हमारे माता_ पिता यहां से पश्चिम में कुछ ही दूरी पर निवास करते है । हम गाए चराने का कार्य करते है । अब हम वापिस अपने निवास स्थान पर जा रहे है । ऐसे में ठाकुर साहब ने अपनी जोड़ायत सापू कवर से कहा कि बच्चियों है साथ में नन्हे नन्हें बालक है ,इनको जहां रह रहे है , वहां पहुंचा कर आ जाओ । उस जमाने में अकाल कि वजह से अक्सर अपने मवेशियों को चराने के लिए इधर उधर पलायन करते रहते थे । जोडायत ने कहा कि में नहीं जानती इनको ये बच्चे व कन्याए कहां रहती है सूर्यास्त हो रहा है तब ठाकुर साहब ने अपनी धर्मपत्नी सापु कंवर व श्री गिगाई जी महाराज को लेकर उन बालको के साथ जंगल की ओर चल दिया , चलते - चलते काफी समय हो गया , पर उस गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच सके जहां से वे बालक व बालिकाएं आए थे । ऐसे में ठाकुर साहब ने कहा कि " अब कितनी दूर और चलना पड़ेगा " तब श्री गीगाई जी ने अपने पिता को सम्बोधित करते हुए कहा कि देखो पिताश्री उस स्थान पर इनके निवास करते है । ठाकुर साहब ने उस क्षेत्र को देखा और सोचा की ये क्षेत्र तो हमारे खेतों की अंतिम सरहद है , ये खेत तो अपना ही है ।
पर ये लोग यहां क्यों है ?केसे है ? कहां से आए? एक छोटा सा घर बनाया हुआ है जो कचा है । पास में एक खेजड़ी है उसके नीचे एक छोटा सा कच्चा थान बनाया हुआ है। जिस पर दीपक जगमगा रहा है । घर में से एक आदमी निकलकर बाहर आया वे ठाकुर साहब के पूछने पर बोला की हम पश्चिम के चारण है अकाल पड़ने के कारण अपना क्षेत्र छोड़कर मालवा जा रहे थे यहां गायो के लिए पर्चूर मात्रा में घास व पीने के लिए पानी मिल जाने के कारण हमने हमारी झोपडी बनाकर अपना निवास स्थान बना लिया । आप की आज्ञा हो तो हम हमारी गायो को कुछ समय तक चरा सकते है और फिर अपने स्थान चले जाएंगे । ठाकुर साहब ने कहा कि यह मेरे खेत का अंतिम छोर है , ये जमीन मेरी है आप बेशक यहां निवास कर सकते है।
और मेरे से को सहायता होगी मै समय समय पर आपकी करता रहूंगा । कोई भी चीज ( वस्तु ) तो मै भिजवा सकता हूं । उस व्यक्ति ने बोला नहीं ऐसी कोई जरूरत नहीं हमारे पास सब व्यवस्था है । आप तो क्षेत्र में रहने की आज्ञा दे दीजिए । ठाकुर साहब हा करते हुए अपनी जोड़ायत्त के साथ व श्री गीगाई जी के साथ जल पान करने के पश्चात वापिस अपने घर आ गए ।। यह आषाढ़ मास की शुक्ल पंचमी की रात्रि थी । उसके पश्चात जैसे जैसे समय मिलता ठाकुर साहब उस चारण से मिलने इस स्थान पर आते रहते , वार्तालाप होती रहती , आस पास गाये चरती रहती बचिया व दो बालक खेल रम रहे थे । तब ठाकुर साहब ने उस पश्चिम के चारण से पूछा के आपके बालक तो दो है पर ये बालिकाएं कितनी है ये मेरे से गणना नहीं हो रही है कभी ये पांच , सात कभी नों आखिर में आपके कन्याए कितनी है?
ये सारी कन्याएं आपकी है या आपके किसी भाई की या रिश्तेदार की ये माजरा समझ नहीं आ रहा है । उस चारण ने मुस्करा कर कहा कि ये मेरे नौ बच्चियां नौ लाख जितनी है तो भी ठाकुर साहब के समझ नहीं आ रही थी । अब तक उस अनजान परिवार के बारे में ठाकुर साहब उनकी जोड़ायत साँपु कंवर व पुत्री श्री गिगई जी को ही पता था । श्री गीगाई जी को छोड़कर बाकी दंपति यही सोच रहे थे कि आथुने चारण है अकाल पड़ने की वजह से अपने गायों को चराने के लिए आ गए होंगे । इसके विपरित श्री गीगाईं जी तो सारा रहस्य जानती थी। वे तो जैसे ही रात्रि होती गांव को छोड़कर इस स्थान पर आ जाती । सारी रात नौ लाख शक्तियों के साथ रमण करते तथा प्रभात काल पुनः अपने घर आ जाते एस में श्री गिगाईं जी महाराज दो देह धारण करते एक देह अपने माता_ पिता के साथ दूसरी अलौकिक देह इस बीहड़ सुनसान घोर विरान जंगल में धारण करके नौ लाख महाशक्तियों संघ इस िस्थल पर रास रमती ।
श्री गीगाइ जी महाराज जरूरत पड़ने पर दो देह धारण कर लेते थे ऐसी मान्यता है । मुगलों की सेना से गायों कि गिनती छुड़ाने के लिए श्री गीगाय जी अपने पिता जोगीदास जी के साथ जाने के लिए बालहठ करने लग गए तब ठाकुर साहब ने अपनी धर्मपत्नी से कहा कि इनको मकान में बंद कर दो परन्तु जैसे ही नावद के पास पहुंचे श्री गिगाइ जी एक टीले से उतरते हुए पैदल आते हुए दिखाई दिए जो अपने पिताजी के साथ सारा दिन रहे दूसरी ओर दूसरा देह धारण करते हुए अपनी माता जी के पास रही जिससे माता जी कोई चिंता नहीं हो सके । लेकिन वास्तविकता का पता तब चला जब दोनों देह एक साथ पिता के साथ नावद से आने के बाद चला । एक गीगांई जी अपने पिताजी की अंगुली पकड़े खड़ी दूसरी गिगांई जी अपनी माता की अंगुली पकड़े खड़ी है परन्तु दोनों की अंगुलियों को छोड़ वे एक ही देही में दर्ष्ठिगोचर होने लग गए।
एक समय संध्या क़ाल वे ही कन्याएं व दो बालक ठाकुर साहब ने घर आए उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी थी ।।। बालिकाओं ने ठाकुर साहब से कहा कि आज हमारे वाहा पर्शादी व रातिजगा है आपका परिवार सारे गांव के लोग चलकर परसादी गरहन कीजिए।। ठाकुर साहब ने सारे गांव वालो को कहा कि भैया आथुन ला चारण है अपनी गाय चराने के लिए आए हुए है आपणी कांकड़ सीव पर आपाली आगली डेरी में ढाणी बाणा राखी है ऐ बायां बा री ही है प्रसादी है जीमण जिसने। चालनू है , गांव वालो ने सोचा कि हमने तो उस ढाणी को नहीं देखा लेकिन ठाकुर साहब से भ्य युक्त कुछ नहीं बोले तथा सारे गांव वाले अपनी बैल गाड़ियों के द्वारा इस स्थान पर पहुंचे की ये अलौकिक दृश्य देख ग्राम वासी आश्चर्यचकित हो गए । एक छोटा सा घर पास में एक कच्चा थान , उस थान पर एक बालिका जोत कर रही है । शेष बालिकाएं अपने अपने कामों में व्यस्त थी। एक बालिका लापसी बना रही है एक बालिका खीर चूरमा बना रही है कभी वे बालिकाएं कम संख्या में दर्स्थिगोचर हो रही है परन्तु कभी वे हजारों की संख्या में दिखाई दे रही हैं , पर ग्राम वासी मूक रहे किसी से कोई प्रकार का प्रश्न पूछने की हिम्मत नहीं करता लेकिन मन ही मन आनन्द की अनुभूति जरूर कर रहे थे कि आज यह शुभ समय बहुत अच्छा शकुन देने वाला है । ये साधारण बालिकाएं व बालक न होकर महाशक्तियों का झुण्ड है साथ में ये दो नन्हें_नन्हें बालक जो एक गोरा व एक श्याम वर्ण के ये काले गोरे भेरव है पर ये सारा अल्लोकिक दृश्य दिखाई देने के बाद भी किसी से बया नहीं कर पा रहे थे।
गांव वालो ने सोचा कि ये स्वर्ग जैसा सुख महाशक्तियों व भैरव के दर्शन और इनके द्वारा बनाई गई पर्षादी अहोभाग्य वाले को ही मिलता है , एस समय को वे गवाना नहीं चा रहे थे । सब ग्राम वासी ठाकुर साहब सहित आनन्द की अनुभूति कर रहे थे । जैसे जसोदा जी के बारे में एक जगह लिखा हुआ मिलता है _
जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ ,
सो नन्द भामिनी पावे।।
उसी प्रकार इन नौ लाख लोवड़ वाल महाशक्तियों के दर्शन रूपी सुख भी बड़े _ बड़े संतो , देवताओं के लिए भी दुर्लभ है , वे आज ठाकुर साहब व उनके इंदोख ग्राम वासीयों को मिल रहा था । काक भूसंदी संत भी एक बार श्री कृष्ण की ये परीक्षा लेने के लिए की ये साधारण बालक ही है या भगवान के अवतार है , एस में कोआ बनकर श्री कृष्ण के हाथ से माखन रोटी छीन कर उड़ गया था तब उस कोव के भाग्य के बारे में भी कवियों ने लिखा है _
काग के भाग कहा सजनी ,
हरि हाथ से के गयो माखन रोटी।।
वह ही पर्शादि वाला सुख इंडोखा के ग्राम वासीयों को मिल रहा था जो आज साक्षात महाशक्तियों के हाथों परसादी खा रहे थे । उन बालिकाओं में एक बालिका का नाम करणी था क्योंकि वे सारे दूसरी को बतला रही थी । उनमें कहीं बार करणी करणी का संबोधन हो रहा था तत्पश्चात संभवतया गांव वालो ने इस क्षेत्र का नाम करनिथला नाम दिया होगा । गांव वालो को परसादी प्राप्त होने के बाद चीरजा पाठ हुआ तथा प्रभात काल सारे ग्राम वासी अपनी बैलगाड़ियों के द्वारा पुन गांव आ गए थे । दूसरे दिन कई किसान या गवाले इस इस्थल पर पहुंचे तो देखा कि वहां मनुष्य तो दूर कोई पशु पक्षी ही नहीं नजर आ रहे थे मात्र कुछ चीले आकाश में इधर उधर मंडरा रही थी । हरी खेजड़ी के नीचे कच्चे थान पर जोत जगमगा रही थी दूसरी ओर छोटी सी बोजी ( केलीया ) जिसके द्वारा उन बालिकाओं द्वारा दही का मंथन बिलोना किया जा रहा था उसके ताज़ा तुरंत का दही के छीटें दिखाई दे रहे थे। कालान्तर में उस बोजि को नेहडी का नाम दिया गया वर्तमान में भी विद्यमान है , जहा जोत हो रही थी उस खेजड़ी के नीचे कच्चे थान पर सदियों से इन्डोखा का बिठु परिवार जोत करता आ रहा है। यात्रियों के द्वारा वाहा चड़ावा रुपए कीमती सामान भी चड़ावे पर हमारा बिठू परिवार उपयोग करता आ रहा है । दिन में ठाकुर साहब के द्वारा किसानों को निर्देश मिला की ये जो चारों ओर धोरे दिखाई स्मदे रहे है उपात्यक्ता यह भर दिखाई दे रही है उस क्षेत्र पर हल नहीं जोतना क्योंकि यहां महाशक्तियों की गाएं चरती है । उस क्षेत्र में ठाकुर साहब ने अपने श्रमिको किसानों द्वारा तलाई की खुदाई का कार्य किया। आज भी ' करणी थ्ला नाड़ा ' के नाम से विद्यमान है। इस रमणीक स्थान के दो खेत बाद ही मेरा खेत है , उन में से एक पगडंडी इस ओरण तक है। हम बचपन में हमारे मवेशियों को पानी पिलाने व पेयजल के लिए जाते थे । सारे दिन किसानों का पानी लाने का तांता लगा रहता था । संभवतया ठाकुर साहब ने अपनी भावी पीढ़ी की पानी वाली पूर्ति के लिए ही इस तलाई की खुदाई की थी। इस ओरण से मात्र 500 मीटर पर ही बिठू चारणों के खेत है ये जमीन ठाकुर साहब की 6000 बीघा का ही हिस्सा है । बाकी जमीन आजादी के बाद पेमामस में किसानों के हिस्से में चली गई । वर्तमान में करनिथला ओरण में भव्य मंदिर बना हुआ है धर्मशालां बनी हुई है । जिस रात्रि में गांव वाले उन कन्याओं के बुलाने पर वहा प्र सादी प्राप्त करने के लिए ठाकुर साहब व उनके परिवार के साथ इस ओरण में गए थे , नौ लाख महाशक्तियों के दर्शन किए थे वह रात्रि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी थी उसकी ही स्मृती में यह रात्रिकालीन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संभवतया ओरण की परिक्रमा लगाई जाती होगी इस कहानी के बाद इस ओरण की अनेक कहनियां भी चर्चा में आती है पर वे सारी कहानियां लिखने में न जाने इस प्रकार के कई रजिस्टर सियाई से रंगने पड़ेंगे।
यह कार्तिक मास की ओरण परिक्रमा क्यों लगाई जाती है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मैने इस कहानी का प्रसंग दिया गया है , अगर पाठको को इनमे कोई गलती , त्रुटि या संस्य या चूक लगे तो पागल समझ कर , कम अनुभवी या कम पढ़ा लिखा समझ कर माफ कर देना । और आगे की इस कहानी को विस्तारित समझने के लिए बनाने के लिए कृपया टीकाकरण करना ताकि मै हरिदान s% स्व. दुर्गा दान जी बिठू इंदोखा इस करणीथ्ला ओरण के बारे में आपके सहयोग से कुछ नए तरीके से त्रुटियों का शुद्धिकरण करके लिख सकूं ऐसा आप सभी भाइयों , बुजुर्गो सगे संबंधियों आस पास के ग्रामीण जनों से यह हरीदान अपेक्षित है।
यह काहनी मां भगवती से आदेश मिलने के बाद लिखने की मैने हिम्मत जुटाई है इसमें कहीं चूक या कहीं मन गढ़त लगे तो श्री गीगाई जी महाराज व नौ लाख महाशक्तियों बावन भैरव से क्षमा कि प्रार्थना करता हूं
श्री गीगाई करणी इन्द्र मां कृपा।
हरि दान चारण S% स्व दुर्गा दान जी चारण।
Blogger -Deepak Charan
श्री गणेशाय नमः
श्री गीगाई करणी इन्द्र मां कृपा
(1) करणी थला कहां स्थित हैं?
(2) करनीथला की जमीन पर पुराने जमाने में किसका आधिपत्य था ?
(3) यह परिक्रमा जो ओरण के चारों ओर कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही क्यों लगाई जाती हैं?
> उपरुक्त ये सारे प्रश्न मेरे जेहन में बार बार आते रहते हैं। ऐसे में हमारे पूर्वजों द्वारा बताई गई वो कहानी जो उन्होंने अपने से पहले पूर्वजों से सुनी थी ,याद आती है, तब कुछ प्रश्नों के उत्तर तो उस कहानी के जरिए सही सटीक मिल रहे है । उक्त कहानी को लिखने या समझने से पहले मुझे थोड़ा सा अतीत के झरोखे से झाकना पड़ रहा है।
> श्री करणी चरित्र पुस्तक के रचियता ठाकुर किशोर सिंह वारस्पत्य्य जो तात्कालीन पटियाला रियासत के हिस्टोरियन थे, जिन्होंने अंग्रेजो के द्वारा मेडल भी प्राप्त था। उन्होंने इस पुस्तक में लिखा था कि बिठू की जागीर में बारह गांव थे । इन बाहर गांवों के नाम इस प्रकार है _
(1) बिठनोक (2) देवायतरो (3) रावनियारी। (4) कीनिया री बस्ती (5) साठिको (6) मूंजासर (7) मेघासर। (8) मोखा। (9) मोरखी (10) मानकसर। (11) झिनकली । व (12) इंदोको।
इन में से किसके दायभाग में कोनसा गांव आया इससे हमारे इस चरित्र का कोई सम्बन्ध नहीं है
इंदोकों को छोड़कर शेष गांव की कथा को छोड़कर मै पाठकों को इंदोका की कहानी की ओर ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश करता हूं । इंदोका जो कालान्तर में अपभ्रश होकर वर्तमान में राजस्व अनुसार इंदोखा हो गया है। कालान्तर में इस गांव की जागीर में भी परिवर्तन हो गया , जिस गाव की सारी जागीर पर बीठू चारनों का अधिकार था , उनके स्थान पर शेष 6000 बीघा जमीन ही बिठू चारनो के हिस्से में रही । ऐसा वर्णन हमारे बही भाट ने अपनी बही में लिखा है कि गोविंद दास जी बिठू जिन्होंने 6000 बीघा जमीन कचरा चौहान से प्राप्त की।
उन्होंने अपनी बही में लिखा है कि उन्ही बिठू चारणों
का वंशज गोविन्द दास जी जिन्होंने विक्रम संवत् 1665 में 6000 बीघा जमीन का रकबा पुनः प्राप्त किया।
गोविंद दास जी के दो पुत्र रत्न पैदा हुए , जिनके नाम क्रमशः जोगीदास जी व पीर दास जी थे । बड़े पुत्र जोगिदास जी के घर जोगमाया श्री गीगाई जी महाराज ने विक्रम संवत् 1730 में अवतार लेकर मुगल बादशाह से गाय्यो की गिनती छुड़ाने का ऐतिहासिक कार्य किया ।
जिसका वर्णन इस दोहे से मिल रहा है _
सैप्रत बरसा सात , परवाडो कीधो प्रथम ।
हथ सिर देता हाथ , बाघ थेया जद बाछड़ा ।।
अर्थात सात बरस की अवस्था में बछड़ों के पीठ पर अपने हाथ से थाप लगाकर बाघ बना दिया था और नावद गांव से मुगलों कि सेना को भागने के लिए मजबुर कर दिया था।
श्री गीगाई जी ने अपने जीवन काल में अनेक परचे परवाडे दिए , लेकिन उन शेष चमत्कारों को छोड़ते हुए , ये पंचम की ओरण वाली परिक्रमा वाला पर्सन मेरे जेहन में बार बार उत्पन हो रहा है , जिसका उतर हमारे पूर्वजों द्वारा बताई हुई निम्न लिखित कहानी में ढूंढने का प्रयास करते हैं , वे बताते है कि " एक शाम को कुछ कन्याए व दो छोटे _छोटे बालक इंदोखा में ठाकुर साहब के घर आए जो श्री गीगाई जी को पहचान रहे थे । ठाकुर साहब ने श्री गीगाई जी को को सम्बोधित करते हुए पूछा " अंदाता ये बालक कोन है? कहां के है? यहां केसे? " उन बालको में से एक बच्ची बोली हम तो आपके इस बच्ची के पास रमने के लिए अक्सर आया करते है आज कुछ देरी हो गई । हमारे माता_ पिता यहां से पश्चिम में कुछ ही दूरी पर निवास करते है । हम गाए चराने का कार्य करते है । अब हम वापिस अपने निवास स्थान पर जा रहे है । ऐसे में ठाकुर साहब ने अपनी जोड़ायत सापू कवर से कहा कि बच्चियों है साथ में नन्हे नन्हें बालक है ,इनको जहां रह रहे है , वहां पहुंचा कर आ जाओ । उस जमाने में अकाल कि वजह से अक्सर अपने मवेशियों को चराने के लिए इधर उधर पलायन करते रहते थे । जोडायत ने कहा कि में नहीं जानती इनको ये बच्चे व कन्याए कहां रहती है सूर्यास्त हो रहा है तब ठाकुर साहब ने अपनी धर्मपत्नी सापु कंवर व श्री गिगाई जी महाराज को लेकर उन बालको के साथ जंगल की ओर चल दिया , चलते - चलते काफी समय हो गया , पर उस गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच सके जहां से वे बालक व बालिकाएं आए थे । ऐसे में ठाकुर साहब ने कहा कि " अब कितनी दूर और चलना पड़ेगा " तब श्री गीगाई जी ने अपने पिता को सम्बोधित करते हुए कहा कि देखो पिताश्री उस स्थान पर इनके निवास करते है । ठाकुर साहब ने उस क्षेत्र को देखा और सोचा की ये क्षेत्र तो हमारे खेतों की अंतिम सरहद है , ये खेत तो अपना ही है ।
पर ये लोग यहां क्यों है ?केसे है ? कहां से आए? एक छोटा सा घर बनाया हुआ है जो कचा है । पास में एक खेजड़ी है उसके नीचे एक छोटा सा कच्चा थान बनाया हुआ है। जिस पर दीपक जगमगा रहा है । घर में से एक आदमी निकलकर बाहर आया वे ठाकुर साहब के पूछने पर बोला की हम पश्चिम के चारण है अकाल पड़ने के कारण अपना क्षेत्र छोड़कर मालवा जा रहे थे यहां गायो के लिए पर्चूर मात्रा में घास व पीने के लिए पानी मिल जाने के कारण हमने हमारी झोपडी बनाकर अपना निवास स्थान बना लिया । आप की आज्ञा हो तो हम हमारी गायो को कुछ समय तक चरा सकते है और फिर अपने स्थान चले जाएंगे । ठाकुर साहब ने कहा कि यह मेरे खेत का अंतिम छोर है , ये जमीन मेरी है आप बेशक यहां निवास कर सकते है।
और मेरे से को सहायता होगी मै समय समय पर आपकी करता रहूंगा । कोई भी चीज ( वस्तु ) तो मै भिजवा सकता हूं । उस व्यक्ति ने बोला नहीं ऐसी कोई जरूरत नहीं हमारे पास सब व्यवस्था है । आप तो क्षेत्र में रहने की आज्ञा दे दीजिए । ठाकुर साहब हा करते हुए अपनी जोड़ायत्त के साथ व श्री गीगाई जी के साथ जल पान करने के पश्चात वापिस अपने घर आ गए ।। यह आषाढ़ मास की शुक्ल पंचमी की रात्रि थी । उसके पश्चात जैसे जैसे समय मिलता ठाकुर साहब उस चारण से मिलने इस स्थान पर आते रहते , वार्तालाप होती रहती , आस पास गाये चरती रहती बचिया व दो बालक खेल रम रहे थे । तब ठाकुर साहब ने उस पश्चिम के चारण से पूछा के आपके बालक तो दो है पर ये बालिकाएं कितनी है ये मेरे से गणना नहीं हो रही है कभी ये पांच , सात कभी नों आखिर में आपके कन्याए कितनी है?
ये सारी कन्याएं आपकी है या आपके किसी भाई की या रिश्तेदार की ये माजरा समझ नहीं आ रहा है । उस चारण ने मुस्करा कर कहा कि ये मेरे नौ बच्चियां नौ लाख जितनी है तो भी ठाकुर साहब के समझ नहीं आ रही थी । अब तक उस अनजान परिवार के बारे में ठाकुर साहब उनकी जोड़ायत साँपु कंवर व पुत्री श्री गिगई जी को ही पता था । श्री गीगाई जी को छोड़कर बाकी दंपति यही सोच रहे थे कि आथुने चारण है अकाल पड़ने की वजह से अपने गायों को चराने के लिए आ गए होंगे । इसके विपरित श्री गीगाईं जी तो सारा रहस्य जानती थी। वे तो जैसे ही रात्रि होती गांव को छोड़कर इस स्थान पर आ जाती । सारी रात नौ लाख शक्तियों के साथ रमण करते तथा प्रभात काल पुनः अपने घर आ जाते एस में श्री गिगाईं जी महाराज दो देह धारण करते एक देह अपने माता_ पिता के साथ दूसरी अलौकिक देह इस बीहड़ सुनसान घोर विरान जंगल में धारण करके नौ लाख महाशक्तियों संघ इस िस्थल पर रास रमती ।
श्री गीगाइ जी महाराज जरूरत पड़ने पर दो देह धारण कर लेते थे ऐसी मान्यता है । मुगलों की सेना से गायों कि गिनती छुड़ाने के लिए श्री गीगाय जी अपने पिता जोगीदास जी के साथ जाने के लिए बालहठ करने लग गए तब ठाकुर साहब ने अपनी धर्मपत्नी से कहा कि इनको मकान में बंद कर दो परन्तु जैसे ही नावद के पास पहुंचे श्री गिगाइ जी एक टीले से उतरते हुए पैदल आते हुए दिखाई दिए जो अपने पिताजी के साथ सारा दिन रहे दूसरी ओर दूसरा देह धारण करते हुए अपनी माता जी के पास रही जिससे माता जी कोई चिंता नहीं हो सके । लेकिन वास्तविकता का पता तब चला जब दोनों देह एक साथ पिता के साथ नावद से आने के बाद चला । एक गीगांई जी अपने पिताजी की अंगुली पकड़े खड़ी दूसरी गिगांई जी अपनी माता की अंगुली पकड़े खड़ी है परन्तु दोनों की अंगुलियों को छोड़ वे एक ही देही में दर्ष्ठिगोचर होने लग गए।
एक समय संध्या क़ाल वे ही कन्याएं व दो बालक ठाकुर साहब ने घर आए उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी थी ।।। बालिकाओं ने ठाकुर साहब से कहा कि आज हमारे वाहा पर्शादी व रातिजगा है आपका परिवार सारे गांव के लोग चलकर परसादी गरहन कीजिए।। ठाकुर साहब ने सारे गांव वालो को कहा कि भैया आथुन ला चारण है अपनी गाय चराने के लिए आए हुए है आपणी कांकड़ सीव पर आपाली आगली डेरी में ढाणी बाणा राखी है ऐ बायां बा री ही है प्रसादी है जीमण जिसने। चालनू है , गांव वालो ने सोचा कि हमने तो उस ढाणी को नहीं देखा लेकिन ठाकुर साहब से भ्य युक्त कुछ नहीं बोले तथा सारे गांव वाले अपनी बैल गाड़ियों के द्वारा इस स्थान पर पहुंचे की ये अलौकिक दृश्य देख ग्राम वासी आश्चर्यचकित हो गए । एक छोटा सा घर पास में एक कच्चा थान , उस थान पर एक बालिका जोत कर रही है । शेष बालिकाएं अपने अपने कामों में व्यस्त थी। एक बालिका लापसी बना रही है एक बालिका खीर चूरमा बना रही है कभी वे बालिकाएं कम संख्या में दर्स्थिगोचर हो रही है परन्तु कभी वे हजारों की संख्या में दिखाई दे रही हैं , पर ग्राम वासी मूक रहे किसी से कोई प्रकार का प्रश्न पूछने की हिम्मत नहीं करता लेकिन मन ही मन आनन्द की अनुभूति जरूर कर रहे थे कि आज यह शुभ समय बहुत अच्छा शकुन देने वाला है । ये साधारण बालिकाएं व बालक न होकर महाशक्तियों का झुण्ड है साथ में ये दो नन्हें_नन्हें बालक जो एक गोरा व एक श्याम वर्ण के ये काले गोरे भेरव है पर ये सारा अल्लोकिक दृश्य दिखाई देने के बाद भी किसी से बया नहीं कर पा रहे थे।
गांव वालो ने सोचा कि ये स्वर्ग जैसा सुख महाशक्तियों व भैरव के दर्शन और इनके द्वारा बनाई गई पर्षादी अहोभाग्य वाले को ही मिलता है , एस समय को वे गवाना नहीं चा रहे थे । सब ग्राम वासी ठाकुर साहब सहित आनन्द की अनुभूति कर रहे थे । जैसे जसोदा जी के बारे में एक जगह लिखा हुआ मिलता है _
जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ ,
सो नन्द भामिनी पावे।।
उसी प्रकार इन नौ लाख लोवड़ वाल महाशक्तियों के दर्शन रूपी सुख भी बड़े _ बड़े संतो , देवताओं के लिए भी दुर्लभ है , वे आज ठाकुर साहब व उनके इंदोख ग्राम वासीयों को मिल रहा था । काक भूसंदी संत भी एक बार श्री कृष्ण की ये परीक्षा लेने के लिए की ये साधारण बालक ही है या भगवान के अवतार है , एस में कोआ बनकर श्री कृष्ण के हाथ से माखन रोटी छीन कर उड़ गया था तब उस कोव के भाग्य के बारे में भी कवियों ने लिखा है _
काग के भाग कहा सजनी ,
हरि हाथ से के गयो माखन रोटी।।
वह ही पर्शादि वाला सुख इंडोखा के ग्राम वासीयों को मिल रहा था जो आज साक्षात महाशक्तियों के हाथों परसादी खा रहे थे । उन बालिकाओं में एक बालिका का नाम करणी था क्योंकि वे सारे दूसरी को बतला रही थी । उनमें कहीं बार करणी करणी का संबोधन हो रहा था तत्पश्चात संभवतया गांव वालो ने इस क्षेत्र का नाम करनिथला नाम दिया होगा । गांव वालो को परसादी प्राप्त होने के बाद चीरजा पाठ हुआ तथा प्रभात काल सारे ग्राम वासी अपनी बैलगाड़ियों के द्वारा पुन गांव आ गए थे । दूसरे दिन कई किसान या गवाले इस इस्थल पर पहुंचे तो देखा कि वहां मनुष्य तो दूर कोई पशु पक्षी ही नहीं नजर आ रहे थे मात्र कुछ चीले आकाश में इधर उधर मंडरा रही थी । हरी खेजड़ी के नीचे कच्चे थान पर जोत जगमगा रही थी दूसरी ओर छोटी सी बोजी ( केलीया ) जिसके द्वारा उन बालिकाओं द्वारा दही का मंथन बिलोना किया जा रहा था उसके ताज़ा तुरंत का दही के छीटें दिखाई दे रहे थे। कालान्तर में उस बोजि को नेहडी का नाम दिया गया वर्तमान में भी विद्यमान है , जहा जोत हो रही थी उस खेजड़ी के नीचे कच्चे थान पर सदियों से इन्डोखा का बिठु परिवार जोत करता आ रहा है। यात्रियों के द्वारा वाहा चड़ावा रुपए कीमती सामान भी चड़ावे पर हमारा बिठू परिवार उपयोग करता आ रहा है । दिन में ठाकुर साहब के द्वारा किसानों को निर्देश मिला की ये जो चारों ओर धोरे दिखाई स्मदे रहे है उपात्यक्ता यह भर दिखाई दे रही है उस क्षेत्र पर हल नहीं जोतना क्योंकि यहां महाशक्तियों की गाएं चरती है । उस क्षेत्र में ठाकुर साहब ने अपने श्रमिको किसानों द्वारा तलाई की खुदाई का कार्य किया। आज भी ' करणी थ्ला नाड़ा ' के नाम से विद्यमान है। इस रमणीक स्थान के दो खेत बाद ही मेरा खेत है , उन में से एक पगडंडी इस ओरण तक है। हम बचपन में हमारे मवेशियों को पानी पिलाने व पेयजल के लिए जाते थे । सारे दिन किसानों का पानी लाने का तांता लगा रहता था । संभवतया ठाकुर साहब ने अपनी भावी पीढ़ी की पानी वाली पूर्ति के लिए ही इस तलाई की खुदाई की थी। इस ओरण से मात्र 500 मीटर पर ही बिठू चारणों के खेत है ये जमीन ठाकुर साहब की 6000 बीघा का ही हिस्सा है । बाकी जमीन आजादी के बाद पेमामस में किसानों के हिस्से में चली गई । वर्तमान में करनिथला ओरण में भव्य मंदिर बना हुआ है धर्मशालां बनी हुई है । जिस रात्रि में गांव वाले उन कन्याओं के बुलाने पर वहा प्र सादी प्राप्त करने के लिए ठाकुर साहब व उनके परिवार के साथ इस ओरण में गए थे , नौ लाख महाशक्तियों के दर्शन किए थे वह रात्रि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी थी उसकी ही स्मृती में यह रात्रिकालीन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संभवतया ओरण की परिक्रमा लगाई जाती होगी इस कहानी के बाद इस ओरण की अनेक कहनियां भी चर्चा में आती है पर वे सारी कहानियां लिखने में न जाने इस प्रकार के कई रजिस्टर सियाई से रंगने पड़ेंगे।
यह कार्तिक मास की ओरण परिक्रमा क्यों लगाई जाती है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मैने इस कहानी का प्रसंग दिया गया है , अगर पाठको को इनमे कोई गलती , त्रुटि या संस्य या चूक लगे तो पागल समझ कर , कम अनुभवी या कम पढ़ा लिखा समझ कर माफ कर देना । और आगे की इस कहानी को विस्तारित समझने के लिए बनाने के लिए कृपया टीकाकरण करना ताकि मै हरिदान s% स्व. दुर्गा दान जी बिठू इंदोखा इस करणीथ्ला ओरण के बारे में आपके सहयोग से कुछ नए तरीके से त्रुटियों का शुद्धिकरण करके लिख सकूं ऐसा आप सभी भाइयों , बुजुर्गो सगे संबंधियों आस पास के ग्रामीण जनों से यह हरीदान अपेक्षित है।
यह काहनी मां भगवती से आदेश मिलने के बाद लिखने की मैने हिम्मत जुटाई है इसमें कहीं चूक या कहीं मन गढ़त लगे तो श्री गीगाई जी महाराज व नौ लाख महाशक्तियों बावन भैरव से क्षमा कि प्रार्थना करता हूं
श्री गीगाई करणी इन्द्र मां कृपा।
हरि दान चारण S% स्व दुर्गा दान जी चारण।
Blogger -Deepak Charan
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Written by me
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